कर्नाटक सरकार ने फिलहाल निजी कंपनियों में आरक्षण का प्रस्तावित विधेयक रोका
अभी हाल ही में कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने Social Media Handle X पर अपने एक संदेश में कहा था कि अब निजी क्षेत्र में भी कर्नाटक के स्थानीय लोगों को आरक्षण देना होगा और इसके लिये एक विधेयक भी लाया जा रहा है।इस विधेयक के अनुसार प्रबंधन के पदों पर 50 प्रतिशत स्थानीय लोगों का आरक्षण होगा तथा अन्य पदों के लिये 70 प्रतिशत आरक्षण देना आवश्यक होगा।
हालांकि इस प्रकार का आरक्षण का प्रस्ताव देने वाला कर्नाटक पहला राज्य नहीं है।पूर्व में भी ऐसे प्रयास हुए हैं जिसमें राज्यों ने इस प्रकार की कवायद की है।
कुछ राज्यों ने लिखित तौर पर तो कुछ ने अलिखित तौर पर लागू भी कर रखा है।Article 16 assures equality of opportunity in matters of public employment and prevents the State from any sort of discrimination on the grounds of religion, race, caste, sex, descent, place of birth, residence or any of them.भारत का संविधान हर भारतीय को यह अधिकार देता है कि वह अपनी क्षमता और प्रतिभा के अनुसार देश के किसी बजी भाग के रोजगार के लिये जा सकता है चाहे वह सरकारी नौकरी हो या निजी क्षेत्र की और फिर तदनुसार उसे बसने का भी अधिकार है।भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के प्रकार हैं:
प्राकृतिक
सामाजिक
नागरिक
राजनीतिक
आर्थिक
कानूनीकर्नाटक से पहले हरियाणा ने 2020 में, आंध्र प्रदेश ने 2019 में और झारखंड ने 2023 में निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण लागू करने की कोशिश की थी। तीनों राज्यों ने वेतन सीमा के साथ कोटा प्रदान किया।हालांकि विशेषज्ञ और विशेष विचारधारा वादी ऐसा मानते हैं कि रोजगार में स्थानीय लोगो को आरक्षण देने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा,स्थानीय लोगों का रोजगार बढ़ेगा,स्थानीय भाषा को और उत्पादन को भी विशेष स्थान मिलेगापर दूसरी ओर यदि इसकी कमियों पर नजर डालें तो पाएंगे कि सबसे पहले संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है। सबसे बड़ी बात कि जन प्रतिनिधि एक ओर तो संविधान की कसम खाकर संविधान और इसके प्रावधानों का अनुसरण करने की बात करते हैं और दूसरी ओर संवैधानिक प्रावधानों का खुला उल्लंघन करते हैं।स्थानीय लोगों को आरक्षण देने की बात का जो सबसे बड़ा नुकसान है वह हैऐसे प्रयासों से उद्योग पर बुरा असर पड़ सकता है क्योंकि ऐसा होने से उद्योगपतियों में एक नकारात्मक विचारधारा पैदा होती है।हरियाणा में आरक्षण के नियम आते ही लगभग 30 प्रतिशत उद्योग वहां से बाहर हो गए। स्थानीय लोगों को आरक्षण देने से प्रतिभावान लोग मिलना कठिन जो जाएगा।ऐसा भी मान सकते हैं कि राज्य सरकार अपने राज्य के युवा वर्ग को सही कौशल निर्माण और शिक्षा दे पाने में असमर्थ है और अपनी कमी पर पर्दा डालने के लिये ऐसे प्रयास करती है।और शायद भविष्य में भी प्रतिभा निखारने की बजाय प्रतिभा का गला घोंटकर केवल राजनीति सेंकने का काम करती है।
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