परिसीमन क्या है?
- bhashashikshan
- Mar 6
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परिसीमन का मतलब है संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः निर्धारित करना ताकि जनसंख्या में हुए बदलावों को ध्यान में रखा जा सके। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लगभग समान संख्या में लोग हों।
आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट संसद में जमा करता है, जो इसे अनुमोदन के लिए समीक्षा करती है। एक बार संसद द्वारा रिपोर्ट स्वीकार कर ली जाती है, इसे कानूनी रूप से लागू कर दिया जाता है।
परिसीमन का उद्देश्य:
समान प्रतिनिधित्व: यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में समान संख्या में लोग हों ताकि सभी को समान प्रतिनिधित्व मिल सके।
जनसंख्या नियंत्रण: जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहित करने के लिए परिसीमन का उपयोग किया जाता है।
राजनीतिक संतुलन: विभिन्न राज्यों के बीच राजनीतिक संतुलन बनाए रखना।
भारतीय संविधान में परिसीमन की प्रक्रिया अनुच्छेद 82 और अनुच्छेद 170 के तहत निर्धारित की जाती है।
अनुच्छेद 82: इसमें संसद को जनगणना के बाद परिसीमन आयोग की स्थापना करने की शक्ति दी गई है, ताकि संसदीय सीटों का पुनर्विन्यास किया जा सके।
अनुच्छेद 170: इसमें राज्यों की विधानसभाओं की सीटों का परिसीमन किया जाता है।
§ प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
§ राज्यों को भी प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
§
परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है।
परिसीमन आयोग के सदस्यों की निम्नलिखित भूमिकाएँ होती हैं:
परिसीमन आयोग के सदस्य साधारणतः मंत्री नहीं होते
o सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
o मुख्य चुनाव आयुक्त
o संबंधित राज्य चुनाव आयुक्त
अध्यक्ष: अध्यक्ष का मुख्य कार्य आयोग की सभी गतिविधियों और प्रक्रियाओं का समन्वय और संचालन करना होता है। वह आयोग की बैठकों की अध्यक्षता करता है और अंतिम निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अध्यक्ष का कार्य आयोग की कार्यवाही को निष्पक्ष और प्रभावी बनाना है।
सदस्य: दो अन्य सदस्य अध्यक्ष के साथ मिलकर परिसीमन प्रक्रिया की योजना बनाते हैं और इसे लागू करते हैं। वे क्षेत्रीय सीमाओं को पुनः निर्धारित करने और जनसंख्या के आंकड़ों का विश्लेषण करने में मदद करते हैं। उनका कार्य सुनिश्चित करना है कि परिसीमन प्रक्रिया न्यायसंगत और पारदर्शी हो।
निर्वाचन आयोग का एक्ज़-ऑफिशियो सदस्य: यह सदस्य निर्वाचन आयोग का प्रतिनिधित्व करता है और आयोग की बैठकों में उपस्थित रहता है। वह परिसीमन प्रक्रिया को निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार सुनिश्चित करने में मदद करता है।
सभी सदस्य मिलकर जनसंख्या के आधार पर संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः निर्धारित करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि परिसीमन प्रक्रिया निष्पक्ष और संतुलित हो।
निर्वाचन क्षेत्र निर्धारित करने के लिए आवश्यक जनसंख्या: भारत में परिसीमन आयोग यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या लगभग समान हो। हालांकि, यह संख्या क्षेत्रीय जनसंख्या घनत्व और भौगोलिक स्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकती है। आमतौर पर, प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 15-20 लाख लोग होते हैं।
§ पहला परिसीमन 1950-51 में किया गया था।
o परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 में अधिनियमित किया गया था।
§ 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के अंतर्गत अबतक भारत में चार बार- 1952, 1963, 1973 तथा 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।
o 1981 और 1991 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन नहीं हुआ।
परिसीमन की प्रक्रिया के निम्नलिखित चरण है:
जनगणना: सबसे पहले जनगणना की जाती है ताकि जनसंख्या के आंकड़े प्राप्त किए जा सकें।
परिसीमन आयोग की स्थापना: संसद एक अधिनियम द्वारा परिसीमन आयोग की स्थापना करती है।
सीमाओं का पुनर्निर्धारण: परिसीमन आयोग जनसंख्या के आधार पर संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः निर्धारित करता है।
आरक्षण: अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए सीटों का आरक्षण किया जाता है।
अंतिम निर्णय: परिसीमन आयोग के निर्णय को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती और यह निर्णय कानूनी रूप से बाध्यकारी होता है।
मंत्रियों की संख्या पर जनसंख्या का प्रभाव: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(1A) के अनुसार, किसी राज्य में मंत्रियों की अधिकतम संख्या उस राज्य की विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसका मतलब है कि जनसंख्या के आधार पर विधानसभा के सदस्यों की संख्या बढ़ने या घटने पर मंत्रियों की संख्या भी बढ़ाई या घटाई जा सकती है।
परिसीमन के कारण विधानसभा सीटों की संख्या में बदलाव हो सकता है, लेकिन मंत्रियों की संख्या में बदलाव का निर्णय राज्य सरकार और विधानसभा के सदस्यों पर निर्भर करता है। अब तक परिसीमन के आधार पर किसी राज्य के मंत्रियों की संख्या में सीधे तौर पर बदलाव की जानकारी नहीं है।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। परिसीमन आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी गई है2।
मुख्य बिंदु:
जम्मू में 6 नई विधानसभा सीटें जोड़ी गई हैं, जिससे जम्मू की कुल सीटें 43 हो गई हैं।
कश्मीर में 1 नई विधानसभा सीट जोड़ी गई है, जिससे कश्मीर की कुल सीटें 47 हो गई हैं।
पहली बार अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 9 सीटें आरक्षित की गई हैं।
कश्मीरी प्रवासियों (कश्मीरी हिंदुओं) के लिए विधानसभा में कम-से-कम दो सदस्यों के प्रावधान की सिफारिश की गई है।
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) से विस्थापित व्यक्तियों को भी प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की गई है।
तमिलनाडु में परिसीमन मुद्दा: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने परिसीमन के मुद्दे पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि परिसीमन के कारण तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों की संसदीय सीटों में कमी हो सकती है, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों की सीटों में वृद्धि हो सकती है3। इससे दक्षिणी राज्यों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व में नुकसान हो सकता है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन का मानना है कि 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन करना दक्षिणी राज्यों के लिए न्यायसंगत होगा। उनका कहना है कि अगर परिसीमन केवल वर्तमान जनसंख्या के आधार पर किया गया, तो तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों की संसदीय सीटों में कमी हो सकती है2। 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन करने से दक्षिणी राज्यों को उनके जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों का लाभ मिलेगा1
इस विषय पर जानकारी नहीं थी पर इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से परिसीमन आयोग - इसकी संरचना तथा कार्यों के बारे में विस्तार से जानने को मिला। बेहद आसानी से प्रस्तुत की गई जानकारी।
अति सुंदर